असली शत्रु कौन?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते राष्ट्र के नाम सम्बोधन में कहा कि हम एक अदृश्य शत्रु से जंग लड़ रहे है इसलिए हमारी जंग अत्यंत कठिन है | प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य कोरोना महामारी के विषय में था। परन्तु प्रंधानमंत्री के बयान पढ़कर मुझे भगवत गीता में अर्जुन के प्रश्न का स्मरण हो आया। भ. गी. ३.३६ में अर्जुन की जिज्ञासा भी बिलकुल ऐसी ही थी जिसमे अर्जुन के पूछने का भाव यह है की जीवात्मा का असली शत्रु कौन है ? प्रश्न इस प्रकार है:-
अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष:।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित: ।।
अर्जुन ने कहा : हे वृष्णिवंशी! मनुष्य न चाहते हुए भी पापकर्मों के लिए प्रेरित क्यों होता है? ऐसा लगता है कि उसे बलपूर्वक उनमें लगाया जा रहा हो।
ध्यानपूर्वक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि अर्जुन की जिज्ञासा असली शत्रु का पता लगाने के लिए है क्योंकि जीवात्मा की इच्छा के विरुद्ध पापकर्मों का होना किसी अदृश्य शक्ति का हाथ हो सकता है। कई बार सामान्यतया लोग यह आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पाप और पुण्य भगवान की इच्छानुसार होते हैं परन्तु अर्जुन के इस प्रश्न द्वारा इस निराधार आरोप का भी खण्डन होता है कि जीवात्मा द्वारा पाप या पुण्य भगवदिच्छा द्वारा प्रेरित न होकर बल्कि जीवात्मा के भीतर छिपे नित्य शत्रु द्वारा संपन्न किये जाते हैं। अर्जुन के प्रश्न में सबसे रोचक तथ्य यह है कि यदि योद्धा द्वारा शत्रु की स्थिति, शक्ति या उसकी पैंतरेबाजी का पता लग जाये तो उसका सामना करना आसान हो सकता है। परन्तु वस्तुस्थिति अत्यंत जटिल है कि इस भौतिक जगत में प्रत्येक जीवात्मा विभिन्न परिस्थितियों के अंतर्गत एक जंग जैसी स्थिति का सामना करने के समान है।
वर्तमान कोरोना महामारी के परिप्रेक्ष्य में देखने से पता चलता है कि भगवद्गीता में अर्जुन के प्रश्न और भगवान कृष्ण के उत्तर किस प्रकार अदृश्य शत्रुओं का पता लगाने और उनसे मुकाबला करने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जीवात्मा की सहायता करते हैं। इसलिए तो विद्वानों ने भगवद् गीता को किसी भी भौतिक समस्या का आध्यात्मिक समाधान वाला अमर ग्रन्थ घोषित किया है। तो आइये भगवान द्वारा उन अदृस्य शत्रुओं के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करते हैं।
श्री भगवान उवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥ ३.३७
श्री भगवान ने कहा : हे अर्जुन ! इसका कारण रजोगुण के संपर्क से उत्पन्न काम है जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है।
युद्ध के मैदान में शत्रु की शक्ति ठिकाने आदि का आंकलन बहुत आवश्यक बात होती है। भगवान द्वारा बताया गया काम शत्रु की शक्ति और उत्पत्ति का स्रोत बनाने में सहायता करेगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकृति के तीन गुणों में से एक रजोगुण को अद्र्श्य शत्रुओं का जन्मस्थान बताया गया है और उनके स्वरूप को अत्यंत बलशाली और स्वभाव से अत्यंत पापी बताया गया है। यही दो महान शत्रु जीवात्मा को उसके इच्छा के विरुद्ध पापकर्मों नियोजित करते हैं।
जैसाकि प्रधानमंत्री मोदी के कथन से स्पष्ट है कि इस संसार में वर्तमान स्थिति बिलकुल अर्जुन की स्थिति से मेल खाती है। जिस प्रकार अर्जुन ने भगवद्गीता के उपदेशों को सुनकर, समझकर और उनका पालन करके महाभारत के युद्ध में विजयी हुआ उसी प्रकार श्रील प्रभुपाद की शिक्षानुसार वर्तमान दिग्ब्रह्मित सभ्यता को नवजीवन देने की आवश्यकता की पूर्ति श्रीमदभगवद्गीता के इन अमर संदेशो को लोगों तक पहुँचाकर की जा सकती है। ध्यान रखना चाहिए की भगवद्गीता न केवल समस्याओं को पहचानने का बल्कि उनका समुचित और सम्यक समाधान भी प्रस्तुत करती है। एक ओर जहाँ भौतिक विज्ञानं समस्याओं को ठीक-ठीक पहचानने और निराकरण के प्रयास में असफल सिद्ध हो रहा है वही दूसरी और वैदिक विज्ञान का सारांश भगवद्गीता बहुत ही प्रभावशाली तरीके से न केवल क्षणिक दुःखों बल्कि भौतिक जगत की स्थायी एवं वास्तविक समस्याओं जैसे - जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि को पहचानने एवं उनसे मुक्ति पाने का स्थायी समाधान प्रस्तुत करती है। सौभाग्यवश श्रील प्रभुपाद के रूप में इस योग विद्या का महान शिक्षक इस भौतिकता के अंधकार में डूबी सभ्यता को प्रकाशित एवं मार्गदर्शन देने के लिए भगवद्गीता के भक्तिवेदांत तात्पर्य अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकते हैं। निष्कर्ष के रूप में श्रील प्रभुपाद प्रायः अपने प्रवचनों में यह सुप्रशिद्ध श्लोक उद्धृत किया करते थे :-
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥ ७.१४
प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है। किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं।