श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आप मुझे बताए की श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इस एकादशी को पवित्रा एकादशी भी कहा जाता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को पूजा के बाद श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा जरूर सुननी चाहिए, ऐसा करने से व्रत पूर्ण होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल मिलता है।
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था, कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं।
पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा: हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?
राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।
एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।
सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।
लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले: हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है।
उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ।
यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था।
एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।
राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।
लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी।
लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।
इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ।
इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
Read in English
Shri Yudhishthir started saying O God! Tell me what is the name of Shravan Shukla Ekadashi? Kindly tell me the method of fasting and its greatness. Madhusudan started saying that the name of this Ekadashi is Putrada Ekadashi. This Ekadashi is also called Pavitra Ekadashi.
The person observing Putrada Ekadashi fast must listen to the story of the Shravan Putrada Ekadashi fast after worship, by doing this the fast is complete and wishes are fulfilled. Now you listen to its story peacefully. Just by listening to this one gets the fruit of the Vaipayee Yagya. Putrada Ekadashi fasting story! At the beginning of Dwapar Yuga, there was a city named Mahishmati, in which a king named Mahijit used to rule, but due to being childless, the king did not find the kingdom pleasant. He believed that for one who does not have children, both this world and the hereafter are painful. The king took many measures to get the happiness of a son, but the king did not get a son.
Seeing the coming of old age, the king called the representatives of the subjects and said: O people! There is no ill-earned money in my treasury. Nor have I ever taken away the wealth of the gods and brahmins. I didn't even take anyone else's heritage, I kept raising the people like a son. I kept punishing the criminals like sons and brothers. Never hated anyone. Everyone is considered equal. I always worship gentlemen. In this way, even after ruling a righteous state, I do not have a son. So I am suffering a lot, what is the reason for this?
The minister and the representatives of the people went to the forest to consider this matter of King Mahijit. Had darshan of great sages there. To fulfil the best wish of the king, he kept looking at some great ascetic sage.
In an ashram, he was very old, knowledgeable of religion, the great ascetic, foodless, Jitendriya, Jitatma, Jitkrodh, knower of the esoteric elements of Sanatan Dharma, saw Mahatma Lomash Muni, knower of all scriptures, whose one hair falls at the end of Kalpa was.
Everyone went and bowed down to the sage. Seeing those people, Muni asked for what reason had come. Undoubtedly, I will do good for you people. Do not doubt that I am born only for the benefit of others.
Hearing such words of Lomash Rishi, everyone said: O Maharshi! You are more capable than Brahma in knowing our words. Therefore, you remove this doubt of ours. The pious king of Mahishmati Puri, Mahijit, takes care of the people like a son. Still, she is sad because of being childless.
They further said that we are his subjects. Therefore, we are also saddened by his sorrow. With your darshan, we have full faith that this crisis of ours will go away because many troubles go away just by the darshan of great men. Now please tell me the way to become the son of a king.
Hearing this conversation, the sage closed his eyes for a while and after knowing the story of the king's previous birth, he said that this king was a poor Vaishya in his previous birth. Being poor, he did many bad deeds. He used to go from one village to another to do business.
Once upon a time, on the twelfth day of the Shukla Paksha of the month of Jyeshtha, at noon, when he was hungry and thirsty for two days, he went to a reservoir to drink water. At the same place, a thirsty cow who had just gotten married was drinking water.
The king removed that thirsty cow while drinking water and started drinking water himself, which is why the king had to bear this sorrow. Due to being hungry on the day of Ekadashi, he became a king and because of removing the thirsty cow while drinking water, he has to bear the sorrow of separation from his son. Hearing this, everyone started saying O Rishi! Atonement for sins is also written in the scriptures. Therefore, tell me how this sin of the king can be destroyed.
Lomash Muni said that on the Ekadashi of Shravan Shukla Paksha, which is also known as Putrada Ekadashi, all of your fast and stay awake at night, then this sin of the king's previous birth will be destroyed, and the king will get a son. Will be
Hearing such words of Lomash Rishi, all the people including the ministers returned to the city and when Shravan Shukla Ekadashi came, everyone observed Putrada Ekadashi fast and Jagran as per the order of the sage.
After this, on the day of Dwadashi, the fruit of his virtue was given to the king. Due to the effect of that virtue, the queen conceived and after the end of the delivery period, a very bright son was born to her.
That's why O Rajan! This Shravan Shukla Ekadashi was named Putrada. Therefore, those who wish for the happiness of children must observe this fast. By listening to its greatness, man becomes free from all sins and after enjoying the happiness of children in this world, he attains heaven in the hereafter.