भटकती आत्मा
यह किसी हिंदी फिल्म का डायलॉग नहीं है| आध्यात्मिक दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि मानव जाति में जिस जीवात्मा को अपने स्वरूप स्थिति का ज्ञान नहीं है, वह गीता की दृष्टि में एक भटकती आत्मा है| बात अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक इसलिए भी है कि 1st दिसम्बर को गीता जयंती के शुभ अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र बाद मे शिष्य को एसा ब्रह्म ज्ञान दे रहे हैं जिसे सुनकर या पढ़कर एसा ही लगता है कि जीव भूत से ब्रह्मभूत के बीच का जो अन्तर है वह जीवात्मा को भटकती आत्मा बना देती है|
अब यहां पर दो बातें हैं एक तो भटकना दूसरी आत्मा | तो भटकने का अर्थ हैं कि हमारी मंजिल कहीं और है और हम रास्ता भूलकर भटकने की स्थिति में आ गए हैं | यह एक असहज और अवांछित स्थिति है, परंतु आश्चर्य तो तब होता है तब यात्रा पर निकले जीवात्मा भटकी हुई स्थिति में सही मार्ग पर होने का दावा कर देती है कि हम बिल्कुल सही रास्ते पर हैं | जैसे प्रारंभ में अर्जुन ने भगवान के ही समक्ष बहुत से तर्क दिए की युद्ध न करना ही सही और न्याय संगत है |
बिल्कुल वैसे ही स्थिति जमाने की उन तथा-कथित विकसित एवं बुद्धिजीवियों का भी तर्क है कि बिना युद्ध किए भी समाज में शांति एवं धर्म की स्थापना की जा सकती है, जबकि ज्ञान एवं धर्म के पिता श्रीकृष्ण ने अर्जुन समेत तमाम नैतिकतावादी लोगों के तर्क को खंडित करते हुए उसे हृदय के दुर्बलता, मन की कमजोरी एवं अल्प ज्ञानी का लक्षण बता कर कूड़ा करकट बता दिया |
घटनाक्रम में मोड़ वहां पर आता है जहां अर्जुन अब मित्र नहीं शिष्य हैं | यही से उनका भटकना बंद हो जाएगा और हो भी गया, परंतु उनका क्या जो न तो कृष्ण या कृष्ण के प्रामाणिक प्रतिनिधि को गुरु मानने और शरणागत होने के लिए जरा सा भी रुचि नहीं दिखाते | उल्टे शुष्क ज्ञान एवं तर्क के आधार पर गुरु स्वीकार करने की महत्ता को ही खत्म करना चाहते हैं या असली बात को शब्दों के जाल में उलझा कर रख देना चाहते हैं |
ऐसे ही विद्रोही एवं कम पुण्य वाली आत्माओं को श्रील प्रभुपाद जी अपने प्रवचनों एवं पुस्तकों में भटकती आत्मा कहा है | आधुनिक शैक्षिक एवं वैश्विक परिदृश्य में अवलोकन करने पर और गीता के गुरु से सुनने पर स्पष्ट अंतर मालूम पड़ता है कि जीवात्मा की मंजिल कृष्ण चरण आश्रय-कृष्ण प्रेम है | मौजूदा हालात बयां करते हैं कि किस कदर और किस हद तक जीवात्मा को भटकाने में भौतिकतावादी सोच और पाश्चात्य जीवन शैली ने आग में घी डालने का काम किया है |
भगवत गीता का उद्देश्य अज्ञानता के अंधकार में डूबी मानवता का उद्धार करना है | गीता एवं प्रभुपाद के ग्रंथों का वितरण इसी दिशा में एक विनम्र एवं सराहनीय प्रयास है | इस लेख के माध्यम से मैं भटकती आत्मा का विश्लेषण स्वयं के साथ-साथ अन्य लोगों को सहायता या मार्गदर्शन करना ही गुरु कृष्ण और मानवता की सेवा समझता हूं |
अंत में भटकती आत्मा के दुष्परिणाम, दुष्प्रभाव और हानिकारक तत्वों को आसानी से अपने परिवेश में देखा जा सकता हैं, परंतु इतना ही काफी नहीं है | श्रील प्रभुपाद जी कहा करते थे – “अंधेरा कितना भी घना एवं गहरा हो, सूर्य को उगने से नहीं रोक सकता |” जैसे सूर्य अंधकार को नष्ट करने में सक्षम है उसी प्रकार प्रमाणिक गुरु शिष्य परंपरा में एक गुरु ही असंख्य भटकती आत्माओं को सही रास्ता दिखाने में सक्षम है | फिर भी आप अपनी जगह पर एक दीपक का काम करो शायद किसी भटकती आत्मा को प्रकाश मिल जाए |
Bhatakti Aatma
Author
Virupaksha Dasa
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Virupaksha Dasa, a dedicated missionary at the Hare Krishna Movement in Ahmedabad since 2005, passionately teaches the transformative wisdom of the Bhagavad-gita. As the secretary and head of the Krishna Ashray Department, he enthusiastically spreads the message of the Gita and Krishna Consciousness. With his deep understanding and unwavering commitment, Virupaksha Dasa guides individuals to apply the teachings of the Gita in their lives, fostering personal growth and spiritual development.