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Five days of Diwali

धन्वन्तरी अवतार

(धनतेरस के दिन हुआ भगवान् धन्वन्तरि का अवतार)

'धन्वन्तरी', भगवान् कृष्ण के बारहवें अवतार हैं। भगवान् के छः ऐश्वर्यों – धन, शक्ति, बुद्धि, वैराग्य, सौन्दर्य तथा यश में, धन्वन्तरी 'यश' प्रदर्शित करते हैं। उनसे आयुर्वेद का उद्भव हुआ है। वे शीघ्र ही नित्य रोगियों के रोग दूर करते हैं तथा उनसे ही देवताओं को दीर्घ आयु मिलती है। देवताओं और असुरों द्वारा क्षीरसागर मंथन के समय धन्वन्तरी एक सोने के कुम्भ में अमृत लेकर प्रकट हुए थे । उसे प्राप्त करने के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया। यह अमृत बाद में भगवान् ने अपने मोहिनी अवतार में आकर उन्हें वितरित किया।


मोहिनी अवतार

(धनतेरस के दिन हुआ था मोहिनी अवतार का प्राकट्य)

क्षीरसागर मंथन से उत्पन्न अमृत को पाने के लिए देवता और दानव दोनों ही लालायित थे। देवताओं ने भगवान् विष्णु से प्रार्थना की जो कि एक अत्यंत आकर्षक मोहिनी-मूर्ति के रूप में प्रकट हुए। उन्हें देखकर दानव मुग्ध हो गए। मोहिनी-मूर्ति ने दानवों से अमृत कलश लिया और अमृत वितरण के लिए देवताओं और असुरों को अलग-अलग पंक्तियों में बिठाया ताकि वे छल से देवताओं को सारा अमृत दे सकें। किन्तु राहू नामक असुर, रूप बदल कर देवताओं के बीच जा बैठा और अमृत पिने लगा । तुरंत भगवान् मोहिनी ने सुदर्शन चक्र से उसका गला कटा, किन्तु अमृत अस्वादन के कारण वह जीवित रहा।

 

नरकासुर वध

(नर्क चतुर्दशी के दिन हुआ था नरकासुर का वध)

नरकासुर स्वयँ भगवान् तथा भूमि-देवी का पुत्र था, किन्तु आसुरी संगत से वह भी आसुरी बन गया । नरकासुर ने देवता वरुण की छतरी, देवमाता अदिति के कुँडल तथा देवताओं की क्रीडा-स्थली 'मणिपर्वत' चुरा लिए थे। इंद्र के निवेदन पर भगवान् कृष्ण, सत्यभामा देवी के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर के राज्य में पहुँचे। वहाँ उन्होंने नरकासुर से घमासान युद्ध किया। श्री कृष्ण ने भूमि-देवी को वरदान दिया था कि उनकी अनुमति के बिना वे नरकासुर का वध नहीं करेंगे। सत्यभामा देवी, जो साक्षात् भूमि-देवी हैं, ने तुरंत उसके वध की अनुमति दी और भगवान् कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया।

16100 राजकुमारियों से विवाह

(नर्क चतुर्दशी के दिन किया भगवान् कृष्ण ने विवाह )

नरकासुर ने 16100 राजकुमारियों का अपहरण कर अपने महल में कैद कर लिया था । उसकी हत्या कर भगवान् कृष्ण ने सभी को मुक्त किया । वैदिक संस्कृति के अनुसार एक कन्या अपने पिता के संरक्षण से सीधे पति के संरक्षण में जाती  है। किन्तु इनका किसी पुरुष द्वारा अपहरण किये जाने के कारण कोई भी इनसे विवाह नहीं करता। इसलिए अत्यंत व्याकुलता से उन्होंने भगवान् श्री कृष्ण का आश्रय लिया । उनके उद्धार के लिए भगवान् कृष्ण ने स्वयँ को तुरंत 16100 रूपों में विस्तृत किया और प्रत्येक राजकुमारी से विधिवत् सभी से विवाह किया और हर रानी के साथ अलग-अलग महल में निवास करने लगे।

 

दामोदर लीला

(यह लीला भगवान् द्वारा दीपावली के दिन की गई थी)

बालक कृष्ण मटकियाँ फोड़कर, माखन बंदरों को बाँट रहे थे। तब यशोदा माता छड़ी लेकर आईं, और बालक कृष्ण तेज़ी से भागने लगे। यशोदा माता उन्हें कठोर परिश्रम के बाद पकड़ा और दण्डित करने के लिए कृष्ण को एक ओखली से बाँधना चाहा । बाँधते समय रस्सी दो ऊँगली जितनी छोटी पड़ने लगी - तो उन्होंने एक एक करके घर की सभी रस्सियाँ जोड़ी किन्तु वह भी छोटी पड़ गई और सभी अचंभित हो गए । अंततः भगवान् कृष्ण ने अपनी शक्ति से उसे लम्बा किया ताकि माता उन्हें बाँध सकें। रस्सी द्वारा पेट पर बाँधे जाने से उनका नाम दामोदर पड़ा - “दाम” अर्थात रस्सी और “उदर” अर्थात् पेट।

 

दीपावली

(यह लीला भगवान् द्वारा दीपावली के दिन की गई थी)

दिवाली या दीपावली का अर्थ है वह उत्सव जिसमें असंख्य दीप जलाए जाते हैं। यह उत्सव अयोध्यावासियों द्वारा भगवान् श्री रामचन्द्र के चौदह वर्षों के वनवास के उपरान्त अयोध्या वापसी के मंगलमय अवसर पर मनाया गया था। श्री राम के वनवास के दौरान उनके छोटे भाई भरत ने राजपाठ संभाला। जब भगवान् श्री राम अयोध्या लौटे तो उनके स्वागत में भव्य-उत्सव आयोजित किया गया। पूरे शहर में पवित्र वस्तुओं तथा दीपों की सजावट की गई । नागरिक श्री राम की स्तुति का गान कर, पुष्पवृष्टि से भगवान् का स्वागत करने लगे। भगवान् राम की अयोध्या वापसी दीपावली के रूप में मनाई जाती है।


गोवर्धन पूजा

(दीपावली के दूसरे दिन भगवान् कृष्ण ने उठाया गोवर्धन)

एक बार वृन्दावनवासी वार्षिक इंद्र पूजा की तैयारी कर रहे थे । तब भगवान् कृष्ण ने उनसे यह पूजा रुकवाकर उससे से भी महत्वपूर्ण सेवा - गौ, ब्राह्मणों तथा गिरी गोवर्धन को संतुष्ट करने के लिए कहा। इनकी संतुष्टि से ही भगवान् संतुष्ट होते हैं और परम खुशहाली आती है। गिरी गोवर्धन को अन्नकूट अर्पण किया गया । अपनी पूजा बंद होते देख इंद्र क्रोधित हुआ और वृन्दावनवासियों पर मूसलाधार वर्षा करने लगा। व्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान् कृष्ण ने अपने बाएँ हाथ की छोटी उंगली पर सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को उठाया। अपनी गलती का बोध होते ही इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा माँगी।

 

बलि मर्दन

बलि प्रतिपद को (दिवाली के दूसरे दिन) हुआ बलि मर्दन

असुरराज बलि ने तीनों लोकों जीत लिया था। तब देवताओं ने भगवान् हरि से सहायता माँगी और वे “वामन” रूप में आए । बलि एक विशाल यज्ञ आयोजित कर, उपस्थित ब्राह्मणों को दान देने लगा।तब भगवान् वामन ने ब्राह्मण अवतार में आकर बलि से तीन पग भूमि माँगी। उन्होंने पहले पग से नीचे के सरे लोक और दूसरे पग से ऊपर के सरे लोक माप लिए । जब तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा तो महाराज बलि ने अपना सिर समर्पित किया। भगवान् वामन ने उनके सिर पर पग रखकर उन्हें भक्ति का वरदान दिया और सुतल लोक का आधिपति बनाया।

 

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